कविता को कविता रहने दो
प्रतियोगिता हेतु रचना
कविता को कविता रहने दो
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कविता को कविता रहने दो,
जहरीले तुम शब्द न घोलो।
कविता के जो शब्द लिखो,
मिश्री रस से उन्हें भिंगो लो।।
कविता में माधुर्य हो इतना,
जैसी मिठास सुमनों में होती।
मधुरस लेकर मधुमक्खी भी,
शहद से अपना घर भर लेती।।
कविता को कविता रहने दो,
जाति, धर्म का भाव ना घोलो।
ईर्ष्या, नफ़रत, द्वेष भाव से
कविता को अपनी मत तौलो।।
कविता हम किसको कहते हैं,
कविता की तुम शक्ति पहचानो।
कविता में प्रेम के भाव छिपे हैं,
अन्तस्थल के भाव को जानो।।
कविता को कविता रहने दो,
राष्ट्र धर्म का भाव जगा दो।
कविता से वीरों की कुर्बानी,
बुझी हुई फिर ज्योति जला दो।।
युवा वीर सुनकर ये कविता,
आसमान में आग लगा दे।
भारत को जो आंख दिखाए,
उसकी वहीं पर कब्र बना दे।।
कविता से वीरों की कुर्बानी की,
हमको फिर अलख जगाना है।
भारत को फिर से विश्व धरा पर,
विश्व का गुरू बनाना है।।
अब तक था सोने की चिड़िया,
भारत सोने का बनाना है।
हम हैं भारत के वीर सिपाही,
ये दुनिया को हमें दिखलाना है।।
कविता को कविता रहने दो,
आओ हम भी पुरुषार्थ करें।
कविता के सुन्दर भाव जगा,
नव पीढ़ी में नवजोश भरें।।
विद्या शंकर अवस्थी पथिक कानपुर
Shashank मणि Yadava 'सनम'
08-Aug-2023 08:07 AM
खूबसूरत भाव और अभिव्यक्ति बेहतरीन
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Varsha_Upadhyay
08-Aug-2023 06:52 AM
बहुत खूब
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